Thursday 30 August 2012

गुमनाम


लाख भुलाना चाहूं 
पर भूल न पाऊँ तुम्हे 
रहते हो मेरे ख्यालों में 
पर समझ न पाऊँ तुम्हे 
क्या सच मुच कुछ कहते हो तुम ?
या सुनती रहती हूँ मैं यूँही कोई धुन ?
कभी न सोचा था की इस तरह तुम पर कुछ लिखूंगी 
कुछ समय बाद शायद इससे पढ़कर मैं हसूंगी 
क्यूँ नहीं मेरे ख्यालों से जाते हो तुम 
क्यूँ मेरी नींदों मेरे ख्वाबों में आते हो तुम 
तुमने तो कुछ कहा भी नहीं नहीं इशारा कोई किया 
फिर क्यूँ मेरा मन चुपके से तुम्हारे पीछे हो लिया 
तुम कौन हो क्या हो मैं नहीं जानती 
पर हो मेरे जीवन की अभिन्न सच्चाई ये ज़रूर हूँ मानती 
न जाने क्यूँ आज बैठे बैठे ये ख्याल आया 
की चुपके से मेरी ज़िन्दगी में भी है कोई आया 
कितने दिन कितने पल के लिए मैं नहीं जानती 
क्या ये प्यार है, मैं तो नहीं मानती … 

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