Thursday 30 August 2012

मंज़िल


न जाने वो कौन सी मंजिल है जिसकी तरफ मैं चले जा रहा हूँ
न किसी के साथ की ज़रूरत है
न किसी के सहारे की ज़रूरत है
किसी की यादों के सहारे
न जाने वो कौन सी मंजिल है जिसकी तरफ मैं चले जा रहा हूँ
मंजिल पुकार रही है
रास्ता बना रही है
ना कोई निशाँ
ना ही कोई ठिकाना है
फिर भी बस चले जा रहा हूँ
न जाने वो कौन सी मंजिल है जिसकी तरफ मैं चले जा रहा हूँ..
यादों का सहारा है
इरादों का सहारा है
मंजिल की ओर उठ रहे कदमों का सहारा है
इसी लिए अपनी राह तराशता हुआ चला जा रहा हूँ
न जाने वो कौन सी मंजिल है जिसकी तरफ मैं चले जा रहा हूँ …

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