Friday 22 May 2015

क़ाश

ऐ क़ाश के ऐसा हो पाता
वो बचपन
नन्हे क़दमों से
फिर दौड़ा चला आता
ना दुनिया की फ़िक्र
ना ज़माने का डर
अपनी मनमौजों से भरा
वो सुहाना बचपन का सफ़र
वो परियों की कहानियाँ
वो दादी की थपकियाँ
माँ  का लोरियाँ गाना
और यहाँ लेना मेरा झपकियाँ
ना ज़िन्दगी की दौड़ की खबर
ना हर छोटी बड़ी बात की चिंता
हस्ते खेलते गुड़ियों खिलौनों में
था हम सबका बचपन गुज़रता


अब चाहकर भी
लौटना है नामुमकिन
कितने सुकून भरे थे वो
बचपन के प्यारे प्यारे दिन ….

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