Saturday, 31 August 2013

खो रही हूँ....

ये कैसी बेरुखी है उनकी
जो दिल ज़ार ज़ार कर देती है

ये कैसी डोर है बांधी उसने
जो हर बार उसकी ओर खींच लेती है

चाहे न चाहे ये मन
दौड़ पड़ता है उसके संग

कहने को है दूरी लेकिन
क्यूँ सांसें भी उसकी महसूस होती हैं

हर बार न लौटने का वादा करती हूँ खुद से
पर खुद ही उससे दूर नहीं रेह पाती हूँ ...

कहाँ जाऊन ऐ खुदा, दिशा दे
खो रही हूँ अपनी ही गलियों में, मदद दे ...

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