Friday 22 May 2015

ज़िन्दगी से गुफ्तगू

ज़िन्दगी से मैंने पूछा
किस ओर तू है चल पड़ी
बहती है पानी सी
या मौजों की तू हो चली
मुस्कुरायी ज़िन्दगी ये कहकर
ना पानी ना मौजें
हूँ मैं अपने मंन की रानी
जिस ओर मेरा जी चाहे
रचती हूँ वहीँ
एक नयी कहानी
ना आऊँगी हाथ किसी के
जो चाहे जितना ज़ोर लगाए
ना मानूँगी कहना किसी का
जो चाहे माथा पीट मर जाए


मैंने भी नम आँखों से कहा
ऐ कहकशा
तेरा नशा मुझे हुआ नहीं
है साँस लेना ज़रूरी
पर वो भी अब होता नहीं

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