मन में है हलचल
जो शब्दों में ना पिरो पा रही
जो शब्दों में ना पिरो पा रही
बेचैनी है ऐसी
जिससे खुद को ना रोक पा रही
जिससे खुद को ना रोक पा रही
अनजाने एहसास हैं ये
जिनसे नदारद हूँ मैं
जिनसे नदारद हूँ मैं
ख़ुशी या गम का
ना नामोनिशान हैं ये
ना नामोनिशान हैं ये
खोज रही हूँ
अपनी ही पहेली का जवाब मैं
अपनी ही पहेली का जवाब मैं
क्यूँ खो रही हूँ
अनचाहे एहसास के साथ मैं
अनचाहे एहसास के साथ मैं
ना कह पाने की
ये उलझन भी कितनी अजीब है
ये उलझन भी कितनी अजीब है
सोचा तो जाना
मन का तो कोई भी ना मीत है
मन का तो कोई भी ना मीत है
रूह भी कुछ
बदलना है चाह रही
बदलना है चाह रही
मेरी राहों की दिशा का मुख
मोड़ना है चाह रही
मोड़ना है चाह रही
फिर क्यूँ नहीं
मैं उनके साथ चल पा रही ?
मैं उनके साथ चल पा रही ?
ये कैसी है दुविधा
जो मेरे दिल को है तोड़े जा रही
जो मेरे दिल को है तोड़े जा रही
व्यथा से अपनी
अनजान ना हूँ
अनजान ना हूँ
कहने को है इतना
पर फिर यूँ बेजुबान क्यूँ हूँ ?
पर फिर यूँ बेजुबान क्यूँ हूँ ?
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