Monday 6 May 2013

जीने का गुर


खामोश सी ये रातें कुछ कह रही हैं
आंचल में अपने सपने पीरो रही हैं
दूर कहीं किसी तारे ने ख्वाहिश हैं जताई
चन्द्रमा के पास होकर भी है किसी से उसकी जुदाई
आस्मां की चमक बनाते बनाते
अपने ख्वाबों की चमक वो भूल गया
ना जाने कब होगा अधूरापन पूरा
येही सवाल है रात से कर रहा
रात मुस्कुरायी, बोली, ना उदास हो ऐ तारे
अपने ख्वाब को पूरा करना ही मकसद नहीं इस जग का, मेरे प्यारे
दूसरों को मुस्कराहट देना, जगमगाहट देना
जो तू बखूबी है कर रहा
वही तेरा ख्वाब और तेरा मकसद है बदल रहा...

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