खामोश सी ये रातें कुछ कह रही हैं
आंचल में अपने सपने पीरो रही हैं
दूर कहीं किसी तारे ने ख्वाहिश हैं जताई
चन्द्रमा के पास होकर भी है किसी से उसकी जुदाई
आस्मां की चमक बनाते बनाते
अपने ख्वाबों की चमक वो भूल गया
ना जाने कब होगा अधूरापन पूरा
येही सवाल है रात से कर रहा
रात मुस्कुरायी, बोली, ना उदास हो ऐ तारे
अपने ख्वाब को पूरा करना ही मकसद नहीं इस जग का, मेरे प्यारे
दूसरों को मुस्कराहट देना, जगमगाहट देना
जो तू बखूबी है कर रहा
वही तेरा ख्वाब और तेरा मकसद है बदल रहा...
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