Monday 6 May 2013

एक हसीं रात थी वो ......


एक हसीं रात थी वो
किसी अजनबी के साथ थी वो
बातों का दौर कुछ ऐसा चला
अजनबी को हमसफ़र मान ने मन चल पड़ा
दूरियों ने रोकना चाहा
कुछ उम्र ने भी तकाज़ा दिखाया
पर जोर किसी का कहाँ चलना था
हो गया वही जो कभी सोचा न था
वो एहसास लफ़्ज़ों में बयां हो ना पायेगा
वो बिताया हुआ हर लम्हा सिर्फ यादों में खो ना जायेगा
जीया है हर उस पल को हमने
सींचा है उसे एक सपने सा मन में
कभी कभी रातों को वो हमारी याद दिलाएगा
क्या पता एक हवा का झोंका शायद उस हसीं रात को फिर ले आयेगा....

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